ज्ञानियों की गति


  • ख़लील ज़िब्रान
चार मेढक नदी किनारे के एक लट्ठे पर बैठे थे. अचानक लट्ठा धारा में आ गया और धीरे-धीरे बहने लगा. मेढक खुश हो गए और लट्ठे के साथ तैरने लगे. इससे पहले उन्होंने कभी भी नाव की सवारी नहीं की थी.
कुछ दूरी पर पहला मेढक बोला, "यह वास्तव में ही बहुत चमत्कारी लट्ठा है. ऐसे तैर रहा है जैसे जिन्दा हो. ऐसा लट्ठा पहले कभी नहीं सुना."
दूसरे मेढक ने कहा, "नहीं मेरे दोस्त, है तो यह दूसरे लट्ठों जैसा ही. चल यह नहीं रहा है. दरअसल, यह नदी है न, समुद्र की ओर जा रही है. हमें और लट्ठे को यह अपने साथ बहाए ले जा रही है."
तीसरा मेढक बोला, "भाई, गति न तो लट्ठे में है और न नदी में. गति हमारे विचारों में है. बिना विचार के कुछ भी गतिशील नहीं होता."